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रहस्यमाई चश्मा भाग - 58





ब्रह्मांड में महाप्रलय का शंखनाद भी हो जाये तब भी मैं तुम्हे यह वचन देता हूँ कि तुम्हारे कोख में पल रही मेरी संतान को मेरा नाम उत्तराधिकार वैसे ही प्राप्त होगा जैसे एक संतान को मिलता है दशों दिशाएं ग्रह नक्षत्र दिगपाल किन्नर नर देव दानव समय युग ब्रह्मांड सभी मेरी प्रतिज्ञा के साक्षी है और रहेंगे यह मंगलम कि प्रतिज्ञा है जिसे ईश्वर को हर हाल में पूर्ण करना ही होगा क्योकि मैंने मन वचन कर्म धर्म विचार से तुम्हे अपनी अर्धांगिनी स्वीकार कर चुका हूँ अतः शुभा को चिंतित रहने कि कोई आवश्यकता नही है मंगलम चौधरीं कि आंखे भर आयी तभी सुयश और सिंद्धान्त दोनों एक साथ बोल उठे क्या बात है बाबूजी आपकी आंखें क्यो भर आयी,,,,


 मंगलम चौधरीं ने बात बदलते हुए, कहा आज अपने दो बेटों को देख कर मन खुशी से काबू नही रख पाया और आंखे भर आईं आज मेरे लिए बहुत खास अवसर एव समय है जो किसी भी बाप के लिए होता है जिस बाप कि दो दो लायक औलादे उसके सपनो के भविष्य को आगे ले जाने के लिए सक्षम सबल सामने हो तो अतिरेक भवों का उमड़ना स्वभाविक ही है और सिंद्धान्त कि तरफ़ मुखातिब होते हुए बोले बेटे मैने कुछ जिम्मेदारियों को जिन्हें मैं निभाता था उन्हें सुयश के कंधे पर डाल दिया है तुम मिलो कि समस्या और करोबार को देख ही रहे हो आवश्यकता अनुसार सुयश का सहयोग भी ले सकते हो इसे भी औद्योगिक एव व्यवसायिक बारीकियों एव दांव पेज को समझने का मौका मिले यह जिम्मेदारी तुम्हारी है मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों अपनी जिम्मेदारियों को बाखूबी संभाल लो ताकि मैं भी निश्चिंत हो जाऊं बाप कि हैसियत से मंगलम चौधरीं कि सबसे बड़ी उपलब्धि यही होगी सिंद्धान्त और सुयश दोनों ने ही मंगलम चौधरीं के पैर पकड़ कर ऐसे रोने लगे जैसे बच्चे रोते मंगलम चौधरीं ने दोनों को उठाया और अपने गले लगाते हुये बोले नही बेटों तुम्हे रोने कि आवश्यकता कभी नही है ना पड़ेगी क्योकि मंगलम चौधरीं के बेटों के जीवन मे कभी ऐसा अवसर आए ईश्वर भी नही चाहता और ना ही चाहेगा और कुछ कड़क एव अभिमान के अन्दाज़ में मंगलम चौधरीं बोले अब तुम दोनों यह मत कहना शुरू कर देना कि तुम दोनों पर मेरा बहुत उपकार है,,,,,,


 उपकार तो ईश्वर का मुझ पर है कि तुम जैसे राम और लक्ष्मण कृष्ण बलराम जैसे दो बेटे मुझे दिए मैं ईश्वर का इस उपकार के लिए ऋणी हूँ ।अब तुम दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करो और ध्यान रखना तुम दोनों के मध्य किसी प्रकार का भ्रम न जन्म ले पाए चाहे तुम दोनों कि नासमझी से हो या किसी के बहकावे या भ्रम जाल से हो क्योकि अब ऐसे दीमक एव घुन सक्रिय हो जाएंगे या हो चुके होंगे जो मंगलम चौधरीं के साम्राज्य कि प्रगति प्रतिष्ठा से खार खाये हुये है या किसी अनजान भ्रम के कारण शत्रु बन बैठे है यही तुम दोनों के लिए अग्नि परीक्षा होगी एवं शिक्षा समझ कि परख जब भी ऐसे अवसर आये तो धैर्य एव गम्भीरता से समय समाज एव निर्मित परिस्थितियों का बारीकी से अध्ययन करना तब आगे बढ़ना यह मंगलम चौधरीं की शिक्षा है।



औऱ बोले रिश्ते समाज में भावनाओं का प्रवाह तो सम्भव है लेकिन व्यवसाय एव उद्योग में सिर्फ और सिर्फ परिणाम ही भवनाओ का पुरस्कार है साथ ही साथ मानवीय संवेदनाओं का महत्वपूर्ण स्थान है यदि कोई व्यक्ति आपके साथ किसी भी स्तर में कार्य कर रहा है तो उसके दुःख सुख का ध्यान देना ख्याल रखना व्यवसायिक एव औद्योगिक साम्राज्य के विस्तार एव सफलता का सर्वोच्च सिंद्धान्त है लेकिन इसमें भी छल छद्म एव प्रपंच के कारण उभरती संवेदना को समझना सर्वाधिक अनिवार्यता है मंगलम चौधरीं ने स्वंय कभी भी झूठ फरेब आदि को क्षमा नही किया और सच्छाई कि अच्छाई को कभी नज़र अंदाज़ नही किया यह जीवन कि महत्वपूर्ण शिक्षा जो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है को अवश्य तुम दोनों ही अपने जीवन मे उतारना अच्छा बहुत उपदेश हो गया आज बहुत शुभ दिन है,,,,,


जब हमारे दो बेटे मेरे साथ एक साथ बैठकर भोजन करेंगे और सुखिया से बोले सुखिया तुम भोजन की व्यवस्था तुरंत करो सुखिया अंदर गया और थोड़ी देर बाद वापस लौट कर बोला मॉलिक चलिये आज हमारे भी भाग्य खुल गए कि हम आपकी होनहार पीढ़ी को आपके साथ भोजन करते एक साथ देखेंगे जो बहुत सुख संतोष देने वाला समय है सुखिया काका के पीछे पीछे मंगलम चौधरीं सिंद्धान्त और सुयश चल पड़े और रसोई कक्ष से बाहर भोजन के लिए बने विशेष स्थान जहाँ सिर्फ मंगलम चौधरीं का परिवार ही भोजन करता था बैठे और तीनों ने एक साथ बैठ कर भोजन किया और कुछ देर बाद सिंद्धान्त वापस लौट गया और सुयश अपने कार्यो में व्यस्त हो गया सिंद्धान्त मंगलम चौधरीं से मिलकर लौटा,,,,


मीमांशा बड़ी बेशब्री से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी सिंद्धान्त के पहुंचते ही बोली हुई बात बाबूजी से सिंद्धान्त पर जैसे घड़ो पानी डाल दिया हो किसी ने भयंकर सर्दी के महीने में वह पसीने पसीने हो गया मीमांशा ने जब पति कि ऐसी दशा देखी घबराहट से परेशान बोली क्या बात है जी आप बहुत परेशान है सिंद्धान्त ने बहुत धीरे स्वर में बोला क्या काहू मैं तो समझ ही नही पा रहा हूँ की क्या करूँ खून की छटपटाहट से परेशान हूँ तो परिवरिश एव जीवन कि वास्तविकता का सामना नही कर पा रहा हूँ मीमांसा बोली तब तो आपके सामने कोई परेशानी है ही नही क्योकि आपको कुछ सोचना ही नही है सिर्फ दिल कि आवाज को सच्छाई के तरंगों उमंगों मे सुनना है एव चलते जाना है इसमें कौन सी ऐसी बात आ गई कि आपको इतना परेशान होना पड़ा सिंद्धान्त बोला तुम विल्कुन सही हो मैं ही बेवजह उलझा हूँ,,,


उस फरेब में जिसे मैंने कभी देखा ही नही आंख खोला तो चौधरीं साहब कि गोद मे उन्होंने ही माँ बाप दोनों का प्यार दिया उसके बहकावे में क्या आना या उस खून कि आवाज को क्या सुनना जिसने जन्म देते ही मुझे कचरे के डब्बे में फेंक दिया भला हो चौधरीं साहब का जिन्हें ईश्वर ने मेरे जीवन कि छत्र छाया बनाकर भेज दिया यदि चौधरीं साहब नही होते तो मुझे गली के कुत्ते कौवे एव गिध्दों ने नोच नोच कर अपना नेवाला बना लिया होता अब मुझे सच्छाई के साथ ईमानदारी से आगे का सफर तय करना होगा।


जारी है





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3 Comments

Babita patel

05-Sep-2023 12:26 PM

Nice

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KALPANA SINHA

05-Sep-2023 11:56 AM

Amazing

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